तुम हो शीतल मस्त पवन,और बहती सुबहोशाम हो
तुम सरिता हो मेरे मन की,दिल का आश्रय धाम हो
मेरे मन प्रेम जगाकर,तुम रहते हो दूर बहुत
न जाने किस अनजाने,मद में रहते हो चूर बहुत
लेकिन हम भी आशिक़ हैं अब,तुम ही मेरा काम हो
तुम सरिता हो मेरे मन की,दिल का आश्रय धाम हो
वादा तुमने किया था मुझसे,क्या वादे के पक्के हो ??
याद नहीं तो छोड़ दो वादा,क्यों तुम हक्के बक्के हो
कोई मोल नहीं वादों का,प्रेम अगर निष्काम हो
तुम हो सरिता मेरे मन की,दिल का आश्रय धाम हो
प्रेम अमर है लेकिन फिर भी ,होता है एक जनम नया
लेकिन इस युग में हर दिन ही,होता है एक सनम नया
बहुत नशे में झूमे हम भी,पर तुम आखिरी जाम हो
तुम सरिता हो मेरे मन की,दिल का आश्रय धाम हो
– अखिलेन्द्र अजय तिवारी “अखिल”