एक बहुत ही पहुंचे हुए महान साधु थे। ध्यान, साधना के जानकार थे और हमेशा खामोश ही रहते थे।आनेवाले शिष्य उलटा सीधा, कुछ भी पूछें, वे हमेशा हंस कर जबाब देते थे। गुस्सा तो उन्हें कभी आता ही नहीं था।

कोई उन्हें गाली भी देकर जलील करने की कोशिश भी करे तो भी वे हल्की सी मुस्कुराहट के साथ सब टाल देते थे।

गज़ब का धैर्य था उनका !

उनकी ख्याति दूर दूर तक फैली थी।

एक बार एक पत्रकार ने उनकी मुलाकात लेते हुए पूछा-
“बाबा, आप के गुरु कौन हैं? आपने ये इतना धैर्य, ध्यान और साधना की शिक्षा कहां से पा ली है?”

साधु ने उस पत्रकार की ओर प्यारभरी नजरसे देखा और गहरी साँस छोड़ते हुए, कहा –

“बेटा, मैने 40 साल डाॅक्टरका काम किया है। हर प्रकार के मरीजोंको झेलनेकी आदत बना डाली । अब रिटायर होने के बाद साधू बना हूं।”