मैं :

सोचा ज़िन्दगी से पुछु, किस दौड़ भाग में लगा  है …

नसीब के  पन्नो पर , क्यों  दर्द -ए-स्याही  सजाता है ..

लड़ते है  सब, बेख़ौफ़  तेरे  सितमो  से ..

कोई जीत  जाता , और  कोई  हार , अपने  किस्मतो  से ..

बोल  न  ए  जिंदगी , कहे  को  इतना  बेरहम  है ..

क्यों  तेरे  डालियो  पर  फूल  सजते काँटों  में  है ..

वो :

एहसास  है  तुझे .. डालियो  पर  चुभते  काँटों  की ..

क्यों  नहीं  देख  पता  तू  उनपर  लारिया  गुलाबो  की ..

मैं  हूँ  तो  ये  एहसास  पाने  के  लायक  है  तू ..

जीवन  को  जीने  के  ….लायक  है  तू ..

निराकार  हूँ  मैं , साकार  करता  तू  तुझे ..

इसलिए  संघर्ष  संग  भी  सब  चाहते  है  मुझे ..

कोस  भी  रहा  है  तू  किसको .. मैं  नहीं  किसी  का …

वजूद  खुद , सांसो  के  मिटने  तक  है  जिसका