सुनो मैं आज फिर कोई,कहानी कहने आया हूँ
बहुत बोझिल हुई लेकिन ,जवानी सहने आया हूँ
नहीं है रूह अब मुझमें, ये मेरा जिस्म धोखा है
तड़पती रूह की बनकर रवानी बहने आया हूँ
तुम अब भी लगते हो प्यारे ,तुम अब भी दिल में रहते हो
तुम शाम-सवेरे, रात और दिन हर पल ही मुझसे कहते हो
तुम ही हो सबसे खास सख्स अबतलक मेरी तन्हाई में
तुम अब तक रूह को कैद किये ,तुम खून में मेरे बहते हो
हैं यूँ तो जग में लाख हसीं, पर तुमसे प्यारा कोई नहीं
हो रंग रूप चाहे परियों सा, पर दिल का दुलारा कोई नही
खुश रहो सदा है मेरी दुआ, तुम पास रहो या रहो दूर
आँखें देखें हर रोज नया, पर तुम सा नजारा कोई नहीं
मैं हुँ सूरज सा जलता दिन,तुम ठण्डी चाँदनी रात प्रिये
मैं हूँ किस्सा अनसुना मगर ,तुम हर महफ़िल की बात प्रिये
अब और कहूँ मैं क्या तुमको, तुम ही तुम तो हो छाए हुए
मैं पिछड़ा सहमा हुआ दलित,तुम ऊँची वाली जात प्रिये