ऐ खुदा मेरे, तुझमे बस्ता जहां है ..
असरो के बल पर , अब मुक़म्मल मेरा जहां है ..
खिलता है सूरज हरदिन , बरसती फिर चांदनी ..
पर मरजानी ये आदत ,
ले आती वापस रह रहकर , वो बातें पुरानी…
वो बोले कल की सोच , आगे बढ़ना सीख ले …
मैं बोलूं मैं आवारा ,
आ मेरे संग , देख तू चलना सीख ले ..
जानता हूँ मैं , पता है मुझे ,
जीवन में साथ बस दो पल का ..
मुझे तो यारो आदत है ,
उन पल में बसे, यादो के संग चलने का ..
कौन कहता है ..
मैं भटक रहा हूँ , अपने सुनहरे कल से ..
यारों आज़मा के देखो ,
यादों के कारवां में सफर , बढ़ते उजले कल में ..
भूली बिसरी ही सही ,
तुम भी कुछ बता देना ..
पल भर के हीं साथ में , यादें बेमिसाल देना ,
मुसाफिर हूँ यारो ..ये सफर ही मेरा जहां है ..
असरो के बल पर ,अब मुक़म्मल मेरा जहाँ है ..

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