बहुत हुआ यूँ दर्द में जीना,विरह गीत अब नहीं लिखूँगा
बहुत हुआ हर बार हारना,तुम्हें जीत अब नहीं लिखूँगा
तुम न समझे प्रेम मेरा तो, अब न तुमको समझाऊँगा
बहुत हुआ हर बार बदलना,नई रीत अब नहीं लिखूँगा

तुमसे प्रेम किया था हमने
जीवन की ये बड़ी भूल थी
ऊब गए इस दर्द से भी अब
कब से दिल में गढ़ी सूल थी
तुम को भूल गए होते हम
लेकिन थे मजबूर वफ़ा से
हम क्या खोने से डरते थे
रस्ते पर जो पड़ी धूल थी
चाहे लिख दूँ खुद को मुर्दा,तुम्हें मीत अब नहीं लिखूँगा
बहुत हुआ हर बार बदलना ,नई रीत अब नहीं लिखूँगा

हमने तुमको खुदा कहा तो
तुमने कहा इबादत कर लो
हमने कहा नहीं जी सकते
तुमने कहा तो आदत कर लो
हम तुमसे मिलने की खातिर शहर दर शहर भटक रहे थे
हमने कहा गुलाम हुआ दिल
तुमने कहा बगावत कर लो
मेरे मन की रात चाँदनी, गयी बीत अब नहीं लिखूँगा
बहुत हुआ हर बार बदलना,नई रीत अब नहीं लिखूँगा

मन से रूह तक तुम ही तुम थे
तब तुमने छोड़ा था हमको
टूट के तुमसे जुड़ बैठे थे
तब तुमने तोड़ा था हमको
हम फिर भी बेसुध होकर
तुमसे रस्ता पूछ रहे थे
जब हम राह सही चुन लिए
तब तुमने मोड़ा था हमको
जिसको तुमने प्रीत न समझा ,वही प्रीत अब नहीं लिखूँगा
बहुत हुआ हर बार बदलना,नई रीत अब नहीं लिखूँगा