फलक  में  बिखरी  आज , फिर  खिली  ये  चांदनी ..

मद्धम  मद्धम  बढ़ा  रही , दिल  की  बेचैनी ..

उसपर  रात  के  सन्नाटे  में , ये  जुगनुओं की  किरकिरी ..

सताए  बेशुमार , किसे  समझाऊं  ये  बेचैनी ..

कहता  हैं  ये  मन   उससे …अब  तो  आजा ,

बाँहों  में  भर  ले , मुझे  अब  तो  अपना  जा ,

तेरे  साये  में  मुझे  अब  सांस  लेना  है ..

इंतज़ार  ख़त्म  कर , खुद  को  सौंप  देना  है ..

तेरे  दीदार  के  लिए  बेचैन  हुआ  ये  दिल ,

आजा  रे  ओ निंदिया ..अब  तो  मुझसे  मिल ……