रात यूँही चुपचाप ढलती रही
दिल के पल पे यादो की रेल
धीरे धीरे गुजरती रही

सह यात्री रास्ते में उतारते गये
कुछ थोड़ी और कुछ दूर तक साथ रहे
कुछ के स्टेशन और कुछ की मंजिल आती रही
रात यूँही चुपचाप ढलती रही

कुछ मुस्कराहट बरसाती रही
कुछ जज़्बात भटकते रहे
कुछ चुरिंया खनकती रही
रात यूँही चुपचाप ढलती रही

एक मंद हवा का झोका स्नेह बरसता रहा
धीरे धीरे बारिस स्मृतिया भींगता रहा
एक भीनी सी महक कमरे में घुलती रही
बस रात यूँही चुपचाप ढलती रही