चाहा जिसको सब से ज्यादा
माँगा जिसको रब से ज्यादा
भूल गया वो सारी कसमे
तोड़ा उसने हर एक वादा
धाराएं विपरीत हो गयीं
फिर भी मैं संगम लिखता हूँ
रुसवा न हो जाये चाहत
सोच के ये ,मैं कम लिखता हूँ

रातों को जागे थे हम भी
बेपरवाह भागे थे हम भी
हर एक प्रेम कहानी जैसे
चाहत से आगे थे हम भी
तड़पाती हैं यादें फिर भी
यादों की सरगम लिखता हूँ
रुसवा न हो जाये चाहत
सोच के ये, मैं कम लिखता हूँ

कभी अकेले रहे हम नहीं
धाराओं में बहे हम नहीं
मेरे मन से रूह तक वो है
कभी भी उससे कहे हम नहीं
चाहे वो हमराह न रहा
मैं उसको हमदम लिखता हूँ
रुसवा न हो जाये चाहत
सोच के ये ,मैं कम लिखता हूँ

कर के वादे तोड़ क्यों दिए
हमें अकेला छोड़ क्यों दिए
साँसे भी जब हुई तुम्हारी
रुख अपना तुम मोड़ क्यों दिए
चाहे तुम हो रात अंधेरी
मैं तुमको पूनम लिखता हूँ
रुसवा न हो जाये चाहत
सोच के ये, मैं कम लिखता हूँ