मैं झरती रही हरश्रृंगार सी रात भर,
तुम बेली की तरह चढ़ते रहे शिखर
मैं तृष्णा में घुलती रही तुम्हे पाने की
तुम विराग रहे रचते रहे इतिहास
बारिशो के आने से क्या होता है
शुष्क यादों को तो नाम नहीं कर पाती है ना
मन के क्लेश थोड़े काम जरूर होते हैं
गहरे अवसादों को कम नहीं कर पाती है न
मुझे लगता है बारिशे बढ़ा देती है मर्ज
ठंडी फुहारों के नीचे गर्म जज्बात
थोड़ी देर साथ रहने से क्या होता है
धीरे से अपना हाथ चुरा लेती है न
बारिशो के कई किस्से है और कई कहानियाँ
कुछ छद्म छंद है और कुछ रुबाईयाँ
स्वप्न में दूर तक हाथ थामे घूमने से क्या होता है
नींद खुलती है और तुम्हारे चेहरे को भुला देती है न